Home » Philosophy » Hindu » तीसरा नेत्र (द्वितीय खंड)

तीसरा नेत्र (द्वितीय खंड) (Paperback)



  (not rated yet, be the first to write a review)

ISBN-13: 9788190679626
Language: Hindi

This book is available in following formats:
Format Availability Status Price
Paperback In stock
350.00

Publsiher: Astha Prakashan Varanasi

Publication Date: 25 Jun, 2000

Pages Count: 463 Pages

Weight: 500.00 Grams

Dimensions: 5.63 x 8.75 Inches


Subject Categories:

About the Book:

तीसरा नेत्र और उसकी उपलब्धियाँ- तीसरा नेत्र के अनावृत्त होने पर क्या उपलब्ध होता है? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में पहले तो हरिसिद्ध स्वामी मुस्कराये फिर कहने लगे- तीसरा नेत्र का केन्द्र आज्ञाचक्र है। आज्ञाचक्र का भेदन होने पर तीसरा नेत्र अनावृत्त होता है। भेदन के दो मार्ग हैं आन्तरमार्ग और बाह्यमार्ग। भारतीय योग आन्तरमार्ग को महत्व देता है जबकि तिब्बतीय पद्धति बाह्य मार्ग को स्वीकार करती है। आन्तरमार्ग से जो उपलब्धि होती है वह महत्वपूर्ण है और बाता मार्ग से जो उपलक होती है यह सीमित होती है। वास्तव में दोनों उपलब्धियों में जमीन और आसमान का अन्तर है। जहां तक मेरा प्रश्न है मेरे तीसरे नेत्र के जागरण के लिए तिलतीय पद्धति अपनायी गयी थी। बाह्य मार्ग में आज का भेदन आवश्यक नहीं है। भारतीय योगमार्ग के साधक को क्रम से एक-एक चक्क का भेदन करने के पश्चात् अन्त में आज्ञाचक्र का मेंदन करना पड़ता है। ये सारे भेदन एक ही जन्म में सम्भव हैं तो असम्भव भी है। सम्भव तभी है जब सद्‌गुरु उपलब्ध हैं। बाह्य मार्ग में ऐसा कुछ नहीं है। रही मेरी उपलब्धि की बात उसके संबंध में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि काल के तीनों खण्डों-भूत, भविष्य और वर्तमान को कुछ विशेष सीमा के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति के पिछले जन्म, वर्तमान जन्म और अगले जन्म को दृश्यवत् देख लेता हूँ अपने तीसरा नेत्र से लेकिन यह सब भौतिक उपलब्धियाँ हैं, आध्यात्मिक नहीं। आन्तरजगत में प्रवेश कर आत्मा से संबंधित ज्ञान-जिसे आध्यात्मिक ज्ञान कहते हैं की उपलब्धि ही सच्चे अर्थों में तीसरा नेत्र का मुख्य प्रयोजन है लेकिन पूर्णरूप से यह प्रयोजन तभी सिद्ध होता है जब आन्तरमार्ग से तीसरा नेत्र अनावृत्त होगा। यह मैं नहीं कह रहा हूँ कि आध्यात्मिक लाभ मुझे नहीं हुआ है लेकिन जैसा लाभ होना चाहिए वैसा नहीं हुआ है इस दिशा में प्रयासरत अवश्य हूँ मैं। इतना कहकर शून्य में निहारने लगे हरिसिद्ध स्वामी 

पंडित अरुण कुमार शर्मा

पंडित मनोज कुमार शर्मा जी का बायोडाटा

 

In stock


350.00


Recently Viewed
तीसरा नेत्र (द्वितीय खंड)
तीसरा नेत्र (द्वितीय...
Pt. Arun Kumar Sharma
Paperback
कालपात्र: ज्योतिष शास्त्र प्रसंग
कालपात्र: ज्योतिष...
Pt. Arun Kumar Sharma
Paperback