सब कुछ सुनने के बाद रामेश्वर पाण्डेय सिर उठाकर नीले आकाश की ओर शून्य में न जाने क्या देखते हए गम्भीर स्वर में बोले- है शर्माजी है। क्या? आतुर हो उठा मैं।'आवाहन' ।आवाहन, समझा नहीं।उच्चस्तरीय दिव्य आत्माओं को आकर्षित करने और उनसे संपर्क साधने के लिए आवाहन आवश्यक है। 'आवाहन' के दो प्रकार हैं-पहला है more...
इन सारी विशेषताओं को उपलब्ध होने पर ही तुम प्रच्छन्न और अप्रच्छन्न सिद्ध साधकों योगियों और सन्त महात्माओं का सान्निध्य प्राप्त कर सकोगे और उनकी मति-गति अथवा गतिविधि भी समझ सकते हो। कुछ समय तक आध्यात्मिक चर्चा करने के बाद कपिलकुण्डल चले गये। उसके बाद भी कई बार सशरीर उपस्थित हुए कपिलकुण्डल और उनके more...
गुरूजी ने योग-तंत्र पर काफी पुस्तकें, लेख आदि लिखे जो समय-समय प्रकाशित होते रहे। स्वानुभव व अन्वेषण काल में जो अनुभव व ज्ञान प्राप्त किये उसे अपनी प्रांजल भाषा में लिपिबध्द किया। चूंकि योग और तंत्र की जटिल भाषा को सरल व सुबोध कर प्रस्तुत करने की अपनी विशेष शैली थी गुरुजी की व यही उनकी विशेषता रही। more...
पने आध्यात्मिक संक्रमण काल में जिन आध्यात्मिक युग पुरूषों का साथ मिला और जिनके आध्यात्मिक ज्ञान और प्रेरणा से इस मार्ग पर चला।जिनके कारण ज्ञान का सूत्र मिला और आगे बढ़ने की शक्ति मिली अगर उनके बारे में न लिखता तो मेरी अध्यात्म यात्रा और जो भी पुस्तकें लिखी वह अधूरी होती। आज कालञ्जयी पुस्तक मुझे more...
वैरागी यानि जो व्यक्ति इतना समर्थ है कि सुख-दुख विषय वस्तुओं के बीच में रहता हुआ भी अप्रभावित बना रहे। वही सच्चा वैरागी है। वैराग्य स्वतः पैदा होने का भाव है और भाव तभी पैदा होगा जब जीवन में अप्रत्याशित घटना न घट जाये। कुछ लोग उसमें डूबकर जीवन को व्यर्थ कर देते हैं और कुछ लोग हो जाते हैं वैराग्य को more...
अपने शोध एवं अन्वेषण काल में उपर्युक्त तीनों पक्षों पर विशेष रूप से ध्यान रखते हुए योग और तंत्र में निहित तिमिराच्छन्न गूढ़ गोपनीय सत्यों से परिचित होने के लिए अनेक कठिन यात्राओं के अतिरिक्त हिमालय और तिब्बत की भी जीवन-मरण दायिनी हिमयात्रा की मैंने। कहने की आवश्यकता नहीं इसी कल्पनातीत अवस्था में more...
गुरु जी बोले - अगर विचारपूर्वक देखा जाए तो मूलाधार से लेकर कंठ व मस्तक तक जो चक्रों की भावना की गयी है उसी में शब्द के स्फुट अक्षर निवास करते हैं। अगर वे वहां न होते तो वह स्वतः मन में नहीं आ सकते। हम लोग जिस भाषा में सोचते हैं उसके मूल में इक्यावन ध्वनियाँ हैं और इन इक्यावन ध्वनियों का स्थान मन more...
प्रस्तुत संग्रह का शीर्षक है 'रहस्य'। 'रहस्य' इसलिए है कि उसके अन्तर्गत जो भी कथाएँ संकलित की गयी है। वे सभी किसी न किसी रूप में स्वयं में रहस्यों से भरी हुई है। सम्भव है उन्हें पढ़कर पाठकों के मन में किसी प्रकार की जिज्ञासा उत्पन्न हो, प्रश्न उत्पन्न हो और हो कौतूहलों की सृष्टि क्योंकि कथाएँ ही more...
मनुष्य की आत्मा एक ऐसी वस्तु है जो निरन्तर ज्ञान की ओर बढ़ती रहती है, क्योंकि उसका एकमात्र भोजन है ज्ञान। यदि हम उसके मूल निर्देश और संकेत को समझने का प्रयत्न करें तो जीवन अपने आप सही दिशा में बढ़ता जायेगा। अपने आप हम सही मार्ग पर चलते जायेंगे। सच तो यह है कि आत्मा की सारी प्रक्रियाएँ हमारे जीवन more...
प्रस्तुत पुस्तक आकाशचारिणी जो मेरे जीवन का अनुभवपूर्ण व सत्य घटनाओं पर आधारित कथा संग्रह है। प्रस्तुत कथा संग्रह में आप जो कुछ भी पढ़ेंगे, निश्चय ही कुछ प्रसंगों और घटनाओं पर आपको सहसा विश्वास नहीं होगा, यह स्वाभाविक भी है। मनुष्य उन्हीं वस्तुओं पर विश्वास करता है जिस पर वह विश्वास करना चाहता है। more...
मृत्यु एक मंगलकारी क्षण है और एक आनन्दमय अनुभव है। मगर हम अपने संस्कार, वासना, लोभ आदि के कारण उसे दारुण और कष्टमय बना देते हैं। इन्हीं सबका संस्कार हमारी आत्मा पर पड़ा रहता है, जिससे हम मृत्यु के अज्ञात भय से हमेशा त्रस्त रहते हैं।मृत्यु के समय एक नीरव विस्फोट के साथ स्थूल शरीर के परमाणुओं का विघटन more...
अपने पचास वर्ष की आध्यात्मिक अनुभव कथा के यात्राकाल में कब किस समय और किस मोड़ पर क्या अनुभव हुए मुझे और वे अनुभव कब और किन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए? इसका क्रमबद्ध विवरण मेरी स्मृति में नहीं है अब क्योंकि अवस्था के अनुसार स्मृतियों का शनैः शनैः लुप्त होना स्वाभाविक है। जो अनुभव अभी तक स्मृति more...
हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे मूल्यवान कोई अंग है तो वह है नेत्र । महत्वपूर्ण और मूल्यवान होने का कारण यह है कि इसका सीधा संबंध स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और मनोमय शरीर से जुडा हुआ है। नेत्र हमारे तीनो शरीरों की स्थितियों और उनके क्रिया-कलापों को बराबर अभिव्यक्त करते रहते हैं। जिस व्यक्ति का more...
समस्त विषय और उससे संबंधित समस्त भाव, समस्त विचार और समस्त अनुभव जब समाप्त हो जाते हैं और केवल शेष रह जाता है विषयी अनुभोक्ता और साक्षी। उस साक्षी की खोज और उपलब्धि ही एकमात्र अध्यात्म है और उस अध्यात्म का सीधा साक्षात्कार है योग तांत्रिक साधना प्रसंग।सिद्धान्तों और विचारों की भरमार नहीं है बल्कि more...
मेरी यह अन्तिम जिज्ञासा है और वह यह कि तंत्र-मंत्र पर सारी छोटी बड़ी पुस्तके प्रकाशित हैं । 'तन्त्रम्' की क्या विशेषता है।सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पुस्तक स्वानुभवपूर्ण है। क्या है? तंत्र की साधना किसके लिए है? तंत्र के मार्ग पर कौन को सकता है? तांत्रिक साधना में सफलता और सिद्धि किसे प्राप्त more...
योगमाया बोली- भगवन् आप साधारण नहीं हैं। आप जगत के युग पुरुष हैं। आपके द्वारा जगत में जो लीला हुई उसे जगत कभी भी विस्मृत नहीं कर सकता। कुरूक्षेत्र में आपके द्वारा अर्जुन को दिया हुआ ज्ञान वह गीता के रूप में सदैव शाश्वत रहेगा। उसे न अतीत विस्मृत कर पायेगा, न ही भविष्य। वह वर्तमान ही होगा। उसकी हर एक more...
तीसरा नेत्र और उसकी उपलब्धियाँ- तीसरा नेत्र के अनावृत्त होने पर क्या उपलब्ध होता है? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में पहले तो हरिसिद्ध स्वामी मुस्कराये फिर कहने लगे- तीसरा नेत्र का केन्द्र आज्ञाचक्र है। आज्ञाचक्र का भेदन होने पर तीसरा नेत्र अनावृत्त होता है। भेदन के दो मार्ग हैं आन्तरमार्ग और more...