| Format | Availability Status | Price |
|---|---|---|
| Paperback | In stock |
300.00 |
Publsiher: Astha Prakashan Varanasi
Publication Date: 17 May, 2012
Pages Count: 333 Pages
Weight: 500.00 Grams
Dimensions: 5.63 x 8.75 Inches
Edition: 2nd edition
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About the Book:
मृत्यु एक मंगलकारी क्षण है और एक आनन्दमय अनुभव है। मगर हम अपने संस्कार, वासना, लोभ आदि के कारण उसे दारुण और कष्टमय बना देते हैं। इन्हीं सबका संस्कार हमारी आत्मा पर पड़ा रहता है, जिससे हम मृत्यु के अज्ञात भय से हमेशा त्रस्त रहते हैं।
मृत्यु के समय एक नीरव विस्फोट के साथ स्थूल शरीर के परमाणुओं का विघटन शुरु हो जाता है और शरीर को जला देने या जमीन में गाड़ देने के बाद भी ये परमाणु वातावरण में बिखरे रहते हैं। परन्तु इनमें फिर से उसी आकृति में एकत्र होने की तीव्र प्रवृत्ति रहती है। साथ ही इनमें मनुष्य की अतृप्त भोग-वासनाओं की लालसा भी बनी रहती है। इसी को प्रेतात्मा कहते हैं। प्रेतात्मा का शरीर वासनामय आकाशीय होता है। मृत्यु के बाद और प्रेतात्मा के पूर्व की अवस्था को 'मृतात्मा' कहते हैं। मृतात्मा और प्रेतात्मा में बस थोड़ा सा ही अन्तर है। वासना और कामना अच्छी-बुरी दोनों प्रकार की होती हैं। स्थूल शरीर को छोड़कर जितने भी शरीर हैं - सब भोग शरीर हैं। मृतात्माओं के भी भोग शरीर हैं। वे अपनी वासनाओं-कामनाओं की पूर्ति के लिये जीवित व्यक्तियों का सहारा लेती हैं। मगर उन्हीं व्यक्तियों का, जिनका मन दुर्बल है अथवा जिनके विचार, भाव, संस्कार और वासनायें उनसे मिलती-जुलती हैं।मृतात्माओं का शरीर आकाशीय होने के कारण उनकी गति प्रकाश की गति के समान होती है। वे एक क्षण में हज़ारों मील की दूरी तय कर लेती हैं। अपने आकर्षण केन्द्र की ओर वे तुरन्त दौड़ पड़ती हैं।
इस पुस्तक में मृत्यु के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पहलुओं का अनूठा संगम है, जो बताता है कि कैसे अतृप्त वासनाएँ प्रेतात्मा के रूप में अस्तित्व बनाए रखती हैं। यह जीवन के अंतिम सत्य को समझने की दिशा में एक प्रकाशस्तंभ है। अति उत्तम पुस्तक।
पंडित अरुण कुमार शर्मा
पंडित मनोज कुमार शर्मा जी का बायोडाटा