| Format | Availability Status | Price |
|---|---|---|
| Paperback | In stock |
350.00 |
Publsiher: Astha Prakashan Varanasi
Publication Date: 17 May, 2018
Pages Count: 303 Pages
Weight: 500.00 Grams
Dimensions: 5.63 x 8.75 Inches
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About the Book:
गुरु जी बोले - अगर विचारपूर्वक देखा जाए तो मूलाधार से लेकर कंठ व मस्तक तक जो चक्रों की भावना की गयी है उसी में शब्द के स्फुट अक्षर निवास करते हैं। अगर वे वहां न होते तो वह स्वतः मन में नहीं आ सकते। हम लोग जिस भाषा में सोचते हैं उसके मूल में इक्यावन ध्वनियाँ हैं और इन इक्यावन ध्वनियों का स्थान मन में अवश्य है । विश्व की सभी भाषाओँ की ध्वनियों में सबसे ज्यादा ध्वनियाँ संस्कृत की मानी गयी हैं। चीन की ध्वनियाँ ज्यादा हैं लेकिन वे चित्रलिपि पर आधारित हैं। अक्षरों पर नहीं।
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कुण्डलिनी साधना में सबसे महत्वपूर्ण स्थान नाड़ी का है। जिस पर समस्त साधना आधारित है वह है सुषुम्ना नाड़ी। सुषुम्ना नाड़ी के अंदर कुछ भी नहीं है। वह बिल्कुल रिक्त है। इसीलिए सुषुम्ना को योग में शून्य नाड़ी भी कहते हैं। शून्य का मतलब अभाव नहीं है पूर्णता है। सुषुम्ना नाड़ी के महत्व का पहला कारण यह है कि ये अधो लघु मस्तिष्क में स्थित सहस्त्रार से कुण्डलिनी के शक्ति केंद्र मूलाधार से जुड़ी है।
दूसरा कारण यह है कि कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर इसी नाड़ी मार्ग से सहस्त्रार में प्रवेश करती है। जहाँ संयोग शिव तत्त्व से होता है। जिसे सामरस्य मिलन अथवा सामरस्य भाव कहते हैं। तंत्र का यही अद्वैत सिद्धि लाभ है।
तीसरा महत्वपूर्ण कारण है इसी नाड़ी के द्वारा षट्चक्रों का भेदन होता है। जिसकी सहायता से साधक साधना में क्रमिक उन्नति करता चला जाता है।
चौथा कारण यह है की सुषुम्ना के साथ एक और नाड़ी है जिसे चित्रिणी नाड़ी कहते हैं। यह ज्ञान वाहिनी नाड़ी है। यह मूलाधार चक्र से निकल कर लघु मस्तिष्क के केंद्र को उस नाड़ी से जोड़ती है जो केंद्र से निकल कर आज्ञा चक्र में गुह्यनी नाड़ी से मिलती है। चित्रिणी नाड़ी ही एक ऐसी नाड़ी है जो अवचेतन मन को चेतन मन से जोड़ती है।
इस नाड़ी के माध्यम से कभी-कभी अवचेतन मन की अकल्पनीय शक्तियाँ अवचेतन मन की सीमा को लाँघ कर चेतन मन में अकस्मात् प्रगट हो जाती हैं। वह चमत्कार जैसा होता है।
इस अंश में गुरुजी द्वारा बताया गया कि कैसे मूलाधार से सहस्रार तक के चक्रों में शब्दों के अक्षर निहित हैं और सुषुम्ना नाड़ी की शून्यता ही पूर्णता का द्वार है, योग साधना के गूढ़ तत्वों को उजागर करता है। यह ज्ञान भाषा, ध्वनि और कुण्डलिनी के समन्वय को समझने में मार्गदर्शन करता है। एक अद्भुत पुस्तक हैं।
पंडित अरुण कुमार शर्मा
पंडित मनोज कुमार शर्मा जी का बायोडाटा