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गुरूजी ने योग-तंत्र पर काफी पुस्तकें, लेख आदि लिखे जो समय-समय प्रकाशित होते रहे। स्वानुभव व अन्वेषण काल में जो अनुभव व ज्ञान प्राप्त किये उसे अपनी प्रांजल भाषा में लिपिबध्द किया। चूंकि योग और तंत्र more...

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इन सारी विशेषताओं को उपलब्ध होने पर ही तुम प्रच्छन्न और अप्रच्छन्न सिद्ध साधकों योगियों और सन्त महात्माओं का सान्निध्य प्राप्त कर सकोगे और उनकी मति-गति अथवा गतिविधि भी समझ सकते हो। कुछ समय तक more...

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वैरागी यानि जो व्यक्ति इतना समर्थ है कि सुख-दुख विषय वस्तुओं के बीच में रहता हुआ भी अप्रभावित बना रहे। वही सच्चा वैरागी है। वैराग्य स्वतः पैदा होने का भाव है और भाव तभी पैदा होगा जब जीवन में more...

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गुरु जी बोले - अगर विचारपूर्वक देखा जाए तो मूलाधार से लेकर कंठ व मस्तक तक जो चक्रों की भावना की गयी है उसी में शब्द के स्फुट अक्षर निवास करते हैं। अगर वे वहां न होते तो वह स्वतः मन में नहीं आ सकते। more...

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