| Format | Availability Status | Price |
|---|---|---|
| Paperback | In stock |
350.00 |
Publsiher: Astha Prakashan Varanasi
Publication Date: 25 Jun, 1999
Pages Count: 339 Pages
Weight: 400.00 Grams
Dimensions: 5.63 x 8.75 Inches
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About the Book:
हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे मूल्यवान कोई अंग है तो वह है नेत्र । महत्वपूर्ण और मूल्यवान होने का कारण यह है कि इसका सीधा संबंध स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और मनोमय शरीर से जुडा हुआ है। नेत्र हमारे तीनो शरीरों की स्थितियों और उनके क्रिया-कलापों को बराबर अभिव्यक्त करते रहते हैं। जिस व्यक्ति का स्थूल शरीर स्वस्थ और निरोग होता है, उसके नेत्र चंचल, अस्थिर और धूमिल होते है। जिस व्यक्ति का सूक्ष्म शरीर स्वस्थ विकसित और उन्नत होता है उसके नेत्र स्थिर तेजोमय और प्रखर होते हैं। इसी प्रकार जिस व्यक्ति का मनोमय शरीर स्वस्थ विकसित और उन्नत होता है उसके नेत्र स्थिर तेजोमय और प्रखर होने के अतिरिक्त सम्मोहन से भरे स्वप्नालु भी होते है। बार-बार पलकों का गिरना कमजोर इच्छाशक्ति का सूचक है। नेत्रों की अपनी अलग भाषा है। जितने भी भाव हैं और जितने भी विचार हैं, ये सब उसी के द्वारा प्रकट होते है। जो लोग नेत्रों की भाषा पढ़ना जानते हैं, वे किसी के भी नेत्रों को देखकर उसके भावों को समझ सकते है और उसके विचारों को जान सकते हैं।
लोग आँखों की भाषा समझते हैं, उनके लिए यह ज्ञान अमूल्य है – सरल भाषा में गूढ़ सत्य की प्रस्तुति।
यह अंश नेत्रों के महत्व और उनके माध्यम से व्यक्त होने वाले शारीरिक व मानसिक भावों की गहन व्याख्या करता है। नेत्रों की भाषा समझकर व्यक्ति के मनोभावों को जानने का यह सारगर्भित विवेचन प्रशंसनीय है।
पंडित अरुण कुमार शर्मा
पंडित मनोज कुमार शर्मा जी का बायोडाटा