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R 250 - R 500 (11)

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Philosophy

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तीसरा नेत्र और उसकी उपलब्धियाँ- तीसरा नेत्र के अनावृत्त होने पर क्या उपलब्ध होता है? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में पहले तो हरिसिद्ध स्वामी मुस्कराये फिर कहने लगे- तीसरा नेत्र का केन्द्र आज्ञाचक्र है। more...

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350.00



हमारे शरीर में सबसे महत्वपूर्ण और सबसे मूल्यवान कोई अंग है तो वह है नेत्र । महत्वपूर्ण और मूल्यवान होने का कारण यह है कि इसका सीधा संबंध स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और मनोमय शरीर से जुडा हुआ है। नेत्र more...

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350.00



मेरी यह अन्तिम जिज्ञासा है और वह यह कि तंत्र-मंत्र पर सारी छोटी बड़ी पुस्तके प्रकाशित हैं । 'तन्त्रम्' की क्या विशेषता है।सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पुस्तक स्वानुभवपूर्ण है। क्या है? तंत्र की साधना more...

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400.00



गुरूजी ने योग-तंत्र पर काफी पुस्तकें, लेख आदि लिखे जो समय-समय प्रकाशित होते रहे। स्वानुभव व अन्वेषण काल में जो अनुभव व ज्ञान प्राप्त किये उसे अपनी प्रांजल भाषा में लिपिबध्द किया। चूंकि योग और तंत्र more...

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350.00



योगमाया बोली- भगवन् आप साधारण नहीं हैं। आप जगत के युग पुरुष हैं। आपके द्वारा जगत में जो लीला हुई उसे जगत कभी भी विस्मृत नहीं कर सकता। कुरूक्षेत्र में आपके द्वारा अर्जुन को दिया हुआ ज्ञान वह गीता के more...

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350.00



वैरागी यानि जो व्यक्ति इतना समर्थ है कि सुख-दुख विषय वस्तुओं के बीच में रहता हुआ भी अप्रभावित बना रहे। वही सच्चा वैरागी है। वैराग्य स्वतः पैदा होने का भाव है और भाव तभी पैदा होगा जब जीवन में more...

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350.00



गुरु जी बोले - अगर विचारपूर्वक देखा जाए तो मूलाधार से लेकर कंठ व मस्तक तक जो चक्रों की भावना की गयी है उसी में शब्द के स्फुट अक्षर निवास करते हैं। अगर वे वहां न होते तो वह स्वतः मन में नहीं आ सकते। more...

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350.00



अपने शोध एवं अन्वेषण काल में उपर्युक्त तीनों पक्षों पर विशेष रूप से ध्यान रखते हुए योग और तंत्र में निहित तिमिराच्छन्न गूढ़ गोपनीय सत्यों से परिचित होने के लिए अनेक कठिन यात्राओं के अतिरिक्त हिमालय more...

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350.00



सब कुछ सुनने के बाद रामेश्वर पाण्डेय सिर उठाकर नीले आकाश की ओर शून्य में न जाने क्या देखते हए गम्भीर स्वर में बोले- है शर्माजी है। क्या? आतुर हो उठा मैं।'आवाहन' ।आवाहन, समझा नहीं।उच्चस्तरीय दिव्य more...

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350.00



समस्त विषय और उससे संबंधित समस्त भाव, समस्त विचार और समस्त अनुभव जब समाप्त हो जाते हैं और केवल शेष रह जाता है विषयी अनुभोक्ता और साक्षी। उस साक्षी की खोज और उपलब्धि ही एकमात्र अध्यात्म है और उस more...

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275.00